एक शहर छोड़ के आया हूं
एक नए शहर में आया हूं
जो शहर छोड़ के आया हूं
तो खुद को तोड़ के आया हूं
कुछ दरवाजे छूटे होंगे
कुछ रिश्ते भी टूटे होंगे
किसने छोड़ा, किसने तोड़ा
यह तय करना तो मुश्किल है
पर इतना तो तय है फिर भी
जब सीने के खूं से सन कर
घर कोई जोड़ा जाता है
तब अश्क लहू बन रिसते हैं
जब घर वह छोड़ा जाता है
यह मिट्टी-गारे क्या समझें
पानी क्या है और खूं क्या है
बस सीना थोड़ा दुखता है
बस सांसें थोड़ी रुकती हैं
जब सांसें रुकने लगती हैं
दरवाजा तभी छूटता है
और शहर तभी छूटता है
धीरे-धीरे
अंदर ही अंदर
कोई महल टूटता है
पर कहीं किसी के कानों में
आवाज नहीं जा पाती है
और कोई आवाज कहीं
चुपचाप दफन हो जाती है
पर उम्मीदों का क्या कीजै
सुन ले कोई
बस यही सोच कर
नए शहर में जाती हैं
पर क्या कीजै
इस नए शहर में
रंग बहुत ही ज्यादा हैं
गलियां गर चौड़ी हैं इसकी
एक नए शहर में आया हूं
जो शहर छोड़ के आया हूं
तो खुद को तोड़ के आया हूं
कुछ दरवाजे छूटे होंगे
कुछ रिश्ते भी टूटे होंगे
किसने छोड़ा, किसने तोड़ा
यह तय करना तो मुश्किल है
पर इतना तो तय है फिर भी
जब सीने के खूं से सन कर
घर कोई जोड़ा जाता है
तब अश्क लहू बन रिसते हैं
जब घर वह छोड़ा जाता है
यह मिट्टी-गारे क्या समझें
पानी क्या है और खूं क्या है
बस सीना थोड़ा दुखता है
बस सांसें थोड़ी रुकती हैं
जब सांसें रुकने लगती हैं
दरवाजा तभी छूटता है
और शहर तभी छूटता है
धीरे-धीरे
अंदर ही अंदर
कोई महल टूटता है
पर कहीं किसी के कानों में
आवाज नहीं जा पाती है
और कोई आवाज कहीं
चुपचाप दफन हो जाती है
पर उम्मीदों का क्या कीजै
सुन ले कोई
बस यही सोच कर
नए शहर में जाती हैं
पर क्या कीजै
इस नए शहर में
रंग बहुत ही ज्यादा हैं
गलियां गर चौड़ी हैं इसकी
तो भीड़ बहुत ज्यादा भी है
जो भीड़ बहुत ज्यादा है तो
जो भीड़ बहुत ज्यादा है तो
कुछ चेहरे पीछे छूटेंगे
लोगों के बोझ तले दब कर
कुछ घर की छत भी टूटेगी
कुछ लोगों के सिर फूटेंगे
पर भीड़ रुकेगी क्यों आखिर
किसकी मंजिल है कहां किधर
इन बातों से है क्या मतलब
किसके जूतों से कौन दबा
रुक कर रोया
पर भीड़ रुकी किसकी खातिर
जो ठोकर खाकर गिरे यहां
जज्बातों में बह गए यहां
यह भीड़ उन्हें ही रौंदेगी
उन पर यह भीड़ हंसेगी भी
गिरने वाला
रोने वाला
लाचार टूट कर शायद तब
हो जाएगा जब खत्म यहां
जब भीड़ गुजर जाएगी
तब भी शेष बचा रह जाएगा
चल देगा फिर से उस रस्ते
जो नए शहर को जाता है।
लोगों के बोझ तले दब कर
कुछ घर की छत भी टूटेगी
कुछ लोगों के सिर फूटेंगे
पर भीड़ रुकेगी क्यों आखिर
किसकी मंजिल है कहां किधर
इन बातों से है क्या मतलब
किसके जूतों से कौन दबा
रुक कर रोया
पर भीड़ रुकी किसकी खातिर
जो ठोकर खाकर गिरे यहां
जज्बातों में बह गए यहां
यह भीड़ उन्हें ही रौंदेगी
उन पर यह भीड़ हंसेगी भी
गिरने वाला
रोने वाला
लाचार टूट कर शायद तब
हो जाएगा जब खत्म यहां
जब भीड़ गुजर जाएगी
तब भी शेष बचा रह जाएगा
चल देगा फिर से उस रस्ते
जो नए शहर को जाता है।
4 comments:
naye shehar ko bahut khoob describe kiya hai aapne...very touching
naye shehar ko bahut khoobsurti se describe kiya hai...very touching yet real
अनवरत सफर का सिलसिला.
bahut bahut sundar rachna....atmvibhor karti aur shahari aapa-dhapi ka chitran karti si! badhai
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