Thursday, September 18, 2008

अब थकना है और सोना है...



और यहां क्या होना है,
गर है कुछ तो वह सोना है।

हीरे-मोती का क्या करना,
ज़ीस्त-ओ-जहां सब सोना है।

हंसना है या रोना है,
हर पल अपना सोना है।

ख्वाबों में भी खुले नहीं,
वही नींद अब सोना है।

सुनो शेष जी बहुत जी लिए,
अब थकना है और सोना है।

5 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

शेष जी,सुन्दर रचना है।

Udan Tashtari said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.


डेश बोर्ड से सेटिंग में जायें फिर सेटिंग से कमेंट में और सबसे नीचे- शो वर्ड वेरीफिकेशन में ’नहीं’ चुन लें, बस!!!

श्यामल सुमन said...

शेष जी,

अच्छी प्रस्तुति। बधाई।

सुनो शेष जी बहुत जी लिए,
अब थकना है और सोना है।

इन पंक्तियों को पढने के बाद मुझे आदरणीय नन्द कुमार "उन्मन" की पंक्तियाँ याद आ रही है-

अपने सरे खोये मैंने, सपने तुम मत खोना।
होना जो था हुआ आजतक, बाकी अब क्या होना।।

पुनश्च शुभकामनाएँ।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

प्रदीप मानोरिया said...

सुनो शेष जी बहुत जी लिए,
अब थकना है और सोना है।
बहुत बढिया और सटीक लेखन ब्लोग जगत में आपका स्वागत है निरंतरता की चाहत है
फुर्सत हो तो मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें

राजेंद्र माहेश्वरी said...

निद्रा भी कैसी प्यारी वस्तु है घोर दु:ख के समय भी मनुष्य को यही सुख देती है।